MP सरकार द्वारा श्रमिकों के संवैधानिक अधिकार को समाप्त किया जा रहा है| आपको बता दें कि संविधान में श्रमिकों द्वारा किसी फैक्ट्री, कम्पनी या सरकारी कार्यालयों में 8 घंटे कार्य करने का समय तय किया गया है| संविधान द्वारा निर्धारित इस कानून में भाजपा की शिवराज सरकार द्वारा संशोधन कर श्रमिकों के लिए 12 घंटे कर देना संविधान में निर्धारित नियम की अवहेलना करना है, यह श्रमिक वर्ग के साथ अन्याय है|
संविधान में निर्धारित श्रमिक कानून जिसमें मजदूर वर्ग के काम करने के समय को 8 घंटे तय किया गया था, उसके साथ छेड़छाड़ करके 12 घंटे कर दिया जाना, श्रमिकों के अधिकार का हनन है, यह मजदूर वर्ग के हित में नहीं वरन् उनके शोषण को बढ़ावा देना है|
सरकार अब नये कानून बना रही है, किसानों के लिये मंडी एक्ट में बदलाव, मज़दूरों के लिये श्रम कानूनों में बदलाव ... लेकिन इनपर चर्चा किये बग़ैर ... अब सवाल है कि जिस वर्ग को फायदे पहुंचाने के नाम पर ये संशोधन किये जा रहे हैं क्या वाकई उनको फायदा होगा.सीपीएम के नेता बादल सरोज सीधे कहते हैं, श्रम कानून में संशोधन जन विरोधी हैं, शोषण बढ़ाने वाले हैं.
औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में संशोधन के बाद नवीन स्थापनाओं को एक हजार दिवस तक औद्योगिक विवाद अधिनियम में अनेक प्रावधानों से छूट मिल जाएगी. संस्थान अपनी सुविधानुसार श्रमिकों को सेवा में रख सकेगा. उद्योगों द्वारा की गई कार्रवाई के संबंध में श्रम विभाग एवं श्रम न्यायालय का हस्तक्षेप बंद हो जाएगा. मध्यप्रदेश औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) अधिनियम 1961 में संशोधन के बाद 100 श्रमिक तक नियोजित करने वाले कारखानों को अधिनियम के प्रावधानों से छूट मिल जाएगी. इस प्रकार MP सरकार द्वारा श्रमिकों को गुलामी करने के लिए बाध्य करना है।
एक और अहम सवाल है कि पूंजीवादी व्यवस्था में सरकारें लगातार श्रम कानूनों की धज्जियां उड़ा रही हैं इससे पहले भी श्रम कानूनों को तोड़ा-मरोड़ा गया ।